अध्याय-2 भारत मे अंग्रेजी राज्य की स्थापना – CBSE Class 8 Social Science History Notes Chapter 2 ➖ From Trade to Territory

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन / Rule by British था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में “इंडिया” कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन / direct administration था (समकालीन, “ब्रिटिश इंडिया”) और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी।

भौगोलिक सीमा /geographic range

ब्रितानी राज गोवा और पुदुचेरी जैसे अपवादों को छोड़कर / barring exceptions वर्तमान समय / Present Time के लगभग सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तक विस्तृत था। विभिन्न समयों पर इसमें अदन (1858 से 1937 तक), लोवर बर्मा (1858 से 1937 तक), अपर बर्मा (1886 से 1937 तक), ब्रितानी सोमालीलैण्ड (1884 से 1898 तक) और सिंगापुर (1858 से 1867 तक) को भी शामिल किया जाता है। बर्मा को भारत से अलग करके 1937 से 1948 में इसकी स्वतंत्रता तक ब्रितानी ताज के अधिन सीधे ही शासीत किया जाता था। फारस की खाड़ी के त्रुशल स्टेट्स को भी 1946 तक सैद्धान्तिक रूप से ब्रितानी भारत की रियासत माना जाता था और वहाँ मुद्रा के रूप में रुपया काम में लिया जाता था।

रजवाड़े /princely states

देशी राज्य, या रियासत, बिरिटिश राज के साथ सहायक गठबंधन के अधीन, एवं स्वदेशी भारतीय शासक द्वारा शासित एक संप्रभु इकाई को कहा जाता था। अगस्त 1947 में भारत और पाकिस्तान के ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के समय 565 रियासत अस्तित्व में थे। यह देशी राज्य ब्रिटिश / native states british भारत का हिस्सा नहीं थे, क्यूंकी वह सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन नहीं आते थे। ब्रिटिश शासकों को मान्यता देकर, या उनसे मान्यता छीन कर राज्यों की आंतरिक राजनीति पर अपना प्रभाव कायम रखते थे।

ब्रितानी शासन का वैचारिक प्रभाव
Ideological impact of British rule

यद्यपि 1857 के विद्रोह ने ब्रितानी उद्यमियों को हिलाकर रख दिया और वो इसे रोक नहीं पाये थे। इस गदर के बाद ब्रितानी और अधिक चौकन्ने हो गये और उन्होंने आम भारतीयों के साथ/ With the Indians संवाद बढ़ाने का पर्यत्न किया तथा विद्रोह करने वाली सेना को भंग कर दिया। प्रदर्शन की क्षमता के आधार पर सिखों और बलूचियों की सेना की नई पलटनों का निर्माण किया गया। उस समय से भारत की स्वतंत्रता तक यह सेना कायम रही 1861 की जनगणना के अनुसार भारत में अंग्रेज़ों की कुल जनसंख्या 125,945 पायी गई। इनमें से केवल 41,862 आम नागरिक थे बाकी 84,083 यूरोपीय अधिकारी और सैनिक थे। 1880 में भारतीय राजसी सेना में 66,000 ब्रितानी सैनिक और 130,000 देशी सैनिक शामिल थे।

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यह भी पाया गया कि रियासतों के मालिक/ princely states और जमींदारों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया था जिसे लॉर्ड कैनिंग के शब्दों में “तूफान में बांध” कहा गया। उन्हें ब्रितानी राज सम्मानित भी किया गया और उन्हें आधिकारिक रूप से अलग पहचान तथा ताज दिया गया। कुछ बड़े किसानों के लिए भूमि-सुधार कार्य भी किये गये जिसे बादमें 90 वर्षों तक वैसा ही रखा गया।

अन्त में ब्रितानियों ने सामाजिक परिवर्तन से भारतीयों के मोहभंग को महसूस किया। विद्रोह तक वो उत्साहपूर्वक सामाजिक परिवर्तन से गुजरे जैसे लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने सती प्रथा पर रोक लगा दी। उन्होंने यह भी महसूस किया कि भारत की परम्परा और रिति रिवाज बहुट कठोर / Very tuff तथा दृढ़ हैं जिन्हें आसानी से नहीं बदला जा सकता; तत्पश्चात और अधिक, मुख्यतः धार्मिक मामलों/ religious matters से सम्बद्ध ब्रितानी सामाजिक हस्तक्षेप नहीं किये गये।

कानूनी आधुनिकीकरण / legal modernization

इतिहासकार राधिका सिंह के अनुसार 1857 के बाद औपनिवेशिक सरकार को मजबूत किया और अदालती प्रणाली के माध्यम से अपनी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, कानूनी प्रक्रिया और विधि को स्थापित किया। नई कानून व्यवस्था में पुराने ताज और पूर्व ईस्ट इंडिया कम्पनी का विलय कर दिया गया तथा नई दीवानी और फौजदारी प्रक्रिया को नई दंड संहिता के रूप / As a code में प्रस्तावित किया गया, जो मुख्यतः अंग्रेज़ कानून पर आधारित थे। 1860–1880 के दशकों में ब्रितानी राज ने जन्म, मृत्यु प्रमाण पत्र, विवाह सहित दतक, सम्पति दस्तावेज और अन्य कार्यों से सम्बद्ध प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिये। इसका उद्देश्य स्थाई, प्रयोज्य, सार्वजनिक रिकॉर्ड और निरीक्षण योग्य पहचान निर्मित किये जा सकें। हालांकि मुस्लिम और हिन्दू दोनों संगठनों ने इसका विरोध किया जिनकी शिकायत थी कि जनगणना और पंजीकरण महिला गोपनीयता को अनावरित कर दिया। परदा पर्था के नियम महिलाओं को उनके नाम लेने और उनके चित्र लेने से निषिद्ध करता है। पहली अखिल भारतीय जनगणना 1868 से 1871 तक सम्पन्न हुई जिसमें व्यक्तिगत नामों के स्थान पर घर में महिलाओं की कुल संख्या के आधार पर गणना की गई। ब्रितानी राज ने भ्रूण हत्या, वेश्या, कुष्ट रोगियों और हिजड़ों को अलग-अलग समूहों में शामिल करना चाहता था।

शिक्षा / Education

ईस्ट इंडिया कम्पनी के दौरान थोमस बैबिंगटन मैकाले ने अपने फ़रवरी 1835 के निर्णय में भारत में स्कूली शिक्षा को अनिवार्य किया और लार्ड विलियम बेंटिक (1828 से 1835 तक गर्वनर जनरल) के विचारों को लागू किया। बेंटिक ने आधिकारिक भाषा के रूप में फारसी के स्थान पर अंग्रेज़ी को लागू करने, अनुदेश अंग्रेज़ी में रखने और अंग्रेज़ी भाषी भारतीय अध्यापकों को प्रशिक्षण देने का अनुग्रह किया था। वो उपयोगितावाद के विचारों से प्रभावित थे। तथापि, बेंटिक का प्रस्ताव लंदन के अधिकारियों द्वारा खारिज कर दिया गया।

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भारतीय अर्थव्यवस्था में 1880 से 1920 तक प्रतिवर्ष 1% के हिसाब से वृद्धि हुई और जनसंख्या में भी लगभग 1% की वृद्धि हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि दीर्घकाल में भी प्रति व्यक्ति आय में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, जिससे जीवन यापन की लागत और अधिक बढ़ गई। अभी भी अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी और अधिकतर किसानों का जीवन यापन का माध्यम कृषि था। इसके बाद व्यापक सिंचाई प्रणाली निर्मित की गई एवं निर्यात और भारतीय उद्योग के लिए कच्चे माल के लिए आवश्यक नकदी फसलों को प्रोहत्साहन दिया गया जिसमें मुख्यतः जूट, कपास, गन्ना, कॉफी और चाय शामिल थीं। औपनिवेशिक काल में भारत का सकल घरेलू उत्पाद शेयर 20% से घटकर 5% पर आ गया। गोपाल कृष्ण गोखले संवैधानिक और उदार राष्ट्रवादी विचारधारा के समाज सुधारक थे जिन्हें 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।

1880 का दशक सामाजिक परिवर्तन का दौर था। उदाहरण के रूप में कवि, संस्कृत की विद्वान रमाबाई ने भारतीय महिलाओं की मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से विधवा पुनर्विवाह के किया और स्वयं एक ब्राह्मण परिवार से होते हुये गैर ब्राह्मण से विवाह किया, बाद में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। 1900 तक आते-आते सुधार आंदोलन भारतीय कांग्रेस के माध्यम से होने लगे। कांग्रेस सदस्य / congress member गोपाल कृष्ण गोखले ने ‘भारतीय सेवक समाज’ की स्थापना की जिसने विधायी सुधार (जैसे हिन्दू बाल विधवा का पुनर्विवाह की अनुमति देना) के लिए पैरवी की तथा उसके सदस्यों ने गरिबी सुधार / poverty reform की कसमें ली और सामाजिक अछूतों के लिए कार्य किया।

सन् 1905 तक आते-आते गोखले द्वारा निर्मित आधुनिक सुधारवादियों का एक बड़ा समूह बन गया, जिन्होंने कई जन आंदोलन किये और नये अतिवादी तैयार किये जिन्होंने न केवल जन आंदोलनों की वकालत की बल्कि समाज सुधार को राष्ट्रवाद के रूप में विकसित किया। इन्हीं उदारवादियों में से एक बाल गंगाधर तिलक थे जिन्होंने पृथक हिन्दू राजनीतिक व्यवस्था जुटाने का प्रयास किया और पश्चिम भारत में वार्षिक गणपति महोत्सव की शुरूआत की

मिशनरी काम / missionary work

1889 में, यूनाइटेड किंगडम के प्रधान मंत्री, रॉबर्ट गस्कॉयने-सेसिल, सैलिसबरी के तीसरे मार्क्वेस ने कहा, “यह न केवल हमारा कर्तव्य है, बल्कि हमारे हित में है कि हम ईसाई धर्म के प्रसार को पूरे देश में यथासंभव बढ़ावा दें।

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज (1866) और सेंट स्टीफंस कॉलेज (1881) ब्रिटिश राज के दौरान स्थापित प्रमुख चर्च-संबद्ध शैक्षिक संस्थानों के दो उदाहरण हैं। ब्रिटिश राज के दौरान / during the British Raj स्थापित शैक्षिक संस्थानों के भीतर, ईसाई ग्रंथ, विशेष रूप से बाइबिल, पाठ्यक्रम का एक हिस्सा थे। भारत में ईसाई मिशनरियों ने भी साक्षरता बढ़ाने का काम किया और सामाजिक सक्रियता में भी लगे हुए हैं, जैसे कि वेश्यावृत्ति के खिलाफ लड़ना, विधवा महिलाओं के पुनर्विवाह के अधिकार का समर्थन करना और महिलाओं के लिए कम उम्र में विवाह रोकने की कोशिश करना।

औद्योगिक पूंजीवाद और मुक्त व्यापार का युग
Era of industrial capitalism and free trade

ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में एक क्षेत्रीय शक्ति बनने के तत्काल बाद ब्रिटेन में एक गहरा संघर्ष इस प्रश्न को लेकर छिड़ गया कि जो नया साम्राज्य प्राप्त हुआ है वह किसके हितों को सिद्ध करेगा, साल दस साल कंपनी को ब्रिटेन के अन्य व्यापारिक और औद्योगिक हितों को सिद्धि के लिए तैयार होने पर मजबूर किया गया। सन् 1813 तक आते आते वह दुर्बल होकर भारत में आर्थिक या राजनीतिक / economic or political शक्ति की छाया भर रह गयी। वास्तविक सत्ता ब्रितानी सरकार के हाथों में आ गयी जो कुछ मिलाकर अंग्रेज पूंजीपतियों के हित सिद्ध करने वाली थी।

इसी दौर में ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति हो गयी और इसके फवस्वरूप वह विश्व के उत्पादन और निर्यात करने वाले देशों की अगली पंक्ति में आ गया। औद्योगिक क्रांति स्वयं ब्रिटेन के भीतर होने वाले बड़े परिवर्तनों की भी जिम्मेदारी रही। समय बीतने के साथ औद्योगिक पूंजीपति शक्तिशाली राजनीतिक प्रभाव के कारण ब्रितानी अर्थव्यवस्था के प्रबल अंग बन गये। इस स्थिति में भारतीय उपनिवेश / Indian Colony का शासन करने की नीतियों को अनिवार्य रूप से उनके हितों के अनुकूल निर्देशित करना था। जो भी हो, साम्राज्य में उनकी दिलचस्पी का रूप ईस्ट इंडिया कंपनी की दिलचस्पी से बिलकुल भिन्न था, क्योंकि वह केवल एक व्यापारिक निगम था। उसके बाद भारत में ब्रितानी शासन अपने दूसरे चरण में पहुंचा।